Wednesday, November 21, 2012

मेरी कविताएं : कविताकोश में


1 comment:


  1. एक अकेला
    कँवल ताल में
    संबंधों की रास खोजता !
    आज त्राण फैलाके अपने ,
    तिनके-तिनके पास रोकता !!
    बहता दरिया चुहलबाज़ ... है
    तिनका तिनका छिना कँवल से !
    दौड़ लगा देता है पागल
    कभी त्राण-मृणाल मसल के !
    सबका यूं वो प्रिय सरोज है ,
    उसे दर्द क्या ?
    कौन सोचता !!
    वाह बहुत खूब

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जीवन की बंजर भूमि में रिश्तों की बाड़ी लगवाके
बोये जो सम्बोधन हमने मोह की गाड़ी भर भर काटे