गीत पढ़िए
मत्स्य गंधी होके जल से आपको एतराज़ कैसा
इस आभासी फलक पे आपका विश्वास कैसा..?
पता था की धूप में होगा निकलना ,
स्वेद कण का भाल पे सर सर फिसलना
साथ छाजल लेके निकले, सर पे साफा बाँधके
खोज है इस खोज में मधुमास क्या बैसाख कैसा ?
बागवां हो बाड़ियों में शूल के बिरवे न रोपो
तुम सही हो सत्य को कसौटी पे कसो सोचो
बूढ़ा बरगद और पीपल सब तो हैं
कंटीली झाड़ी तले तपस्वी आवास कैसा …?
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जीवन की बंजर भूमि में रिश्तों की बाड़ी लगवाके
बोये जो सम्बोधन हमने मोह की गाड़ी भर भर काटे