Sunday, April 25, 2010

मत्स्य गंधी होके जल से आपको एतराज़ कैसा इस आभासी फलक पे आपका विश्वास कैसा..



गीत पढ़िए

मत्स्य गंधी होके जल से आपको एतराज़ कैसा
इस आभासी फलक पे आपका विश्वास कैसा..?

पता था की धूप में होगा निकलना ,
स्वेद कण का भाल पे सर सर फिसलना
साथ छाजल लेके निकले, सर पे साफा बाँधके
खोज है  इस खोज में मधुमास क्या बैसाख कैसा ?

बागवां हो   बाड़ियों में शूल के बिरवे न रोपो
तुम सही  हो सत्य को कसौटी पे कसो सोचो
बूढ़ा बरगद और पीपल सब तो हैं
कंटीली झाड़ी तले तपस्वी आवास कैसा …?

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जीवन की बंजर भूमि में रिश्तों की बाड़ी लगवाके
बोये जो सम्बोधन हमने मोह की गाड़ी भर भर काटे